हरिद्वार।

तीर्थ नगरी हरिद्वार में भाई और बहन* के बीच स्नेह ,त्याग और समर्पण के प्रतीक पावन पर्व भाईदूज का पर्व श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया गया। सुबह से ही बहने सज धज कर भाइयों के स्वागत के लिए तैयार हो गई और भाइयों ने भी बहनों के घर जाकर टीका लगवाया और उपहार देकर बहनों के आशीर्वाद के साथ भैया दूज का पर्व मनाया।

 

भारतीय संस्कृति और परंपरा के इस उत्सव पर सभी भाई बहनों के बीच का अटूट बंधन और अधिक मजबूत होने की कामना और जीवन में सुख शांति और समृद्धि की कल्पना के साथ भाई दूज का पर्व मनाया गया।

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार
भैया दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भारतीय समाज में परिवार सबसे अहम पहलू है। भारतीय परिवारों के एकता यहां के नैतिक मूल्यों पर टिकी होती है।

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इन नैतिक मूल्यों को मजबूती देने के लिए वैसे तो हमारे संस्कार ही काफ़ी हैं लेकिन फिर भी इसे अतिरिक्त मजबूती देते हैं हमारे त्यौहार। इन्हीं त्यौहारों में भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाता एक त्यौहार है भैया दूज।हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक भैया दूज (भाई-टीका) पर्व काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है।

भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाए जाने वाले इस त्यौहार के पीछे की ऐतिहासिक कथा भी निराली है। पौराणिक आख्यान के अनुसार सूर्य पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को आमंत्रित किया कि वह उसके घर आ कर भोजन ग्रहण करें, किन्तु व्यस्तता के कारण यमराज उनका आग्रह टाल जाते थे। कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज ने यमुना के घर जा कर उनका सत्कार ग्रहण किया और भोजन भी किया।

यमराज ने बहन को वर दिया कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करके बहन के घर जा कर श्रद्धापूर्वक उसका सत्कार ग्रहण करेगा उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होगा। तभी से लोक में यह पर्व यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। भाइयों को बहनों की टीकाकरण के चलते इसे भातृ द्वितीया या भाई दूज भी कहते हैं।

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