नई दिल्ली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैदराबाद में 11वीं सदी के समाज सुधारक और संत रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा स्टेच्यू ऑफ इक्वेलिटी (Statue of Equality) का अनावरण करेंगे। चिन्ना जीयर स्वामीजी के आश्रम द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बैठने की स्थिति में यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है। मूर्ति शहर के बाहरी इलाके में 45 एकड़ के परिसर में स्थित है।

मूर्ति बनाने में 1,000 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इसके लिए विश्व स्तर पर भक्तों के दान से पैसे जुटाए गए। श्री रामानुजाचार्य का आंतरिक गर्भगृह 120 किलो सोने से बना है। इसे संत द्वारा पृथ्वी पर बिताए गए 120 वर्षों की स्मृति में बनाया गया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 फरवरी को आंतरिक गर्भगृह की रामानुज की स्वर्ण प्रतिमा का अनावरण करेंगे।

चिन्ना जीयर स्वामी ने कहा कि हम मुख्य अतिथि, गणमान्य व्यक्तियों, भक्तों और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों सहित सभी का दिल से स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी के भव्य उद्घाटन के लिए स्वागत करते हैं। भगवद रामानुजाचार्य समानता के सच्चे प्रतीक बने रहे हैं। यह परियोजना सुनिश्चित करेगी कि उनकी शिक्षाओं को कम से कम 1,000 वर्षों तक अभ्यास किया जाए।

चिन्ना जीयर स्वामी ने कहा कि हमारा मिशन स्टैच्यू ऑफ इक्वलिटी को दुनिया भर के लोगों के लिए सांस्कृतिक रूप से सर्वोपरि स्थान बनाना है और सभी को दुनिया को रहने के लिए एक समान जगह बनाने के लिए प्रेरित करना है। आज दुनिया विभाजन और लोकलुभावनवाद से भरा है। श्री रामानुजाचार्य की विचारधारा समय की आवश्यकता है।

स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को 11वीं शताब्दी के भक्ति संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाया गया है, जिन्होंने आस्था, जाति समेत जीवन के सभी पहलुओं में समानता के विचार को बढ़ावा दिया। दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची बैठी हुई प्रतिमा में 1800 टन से अधिक पंच लोहा का इस्‍तेमाल क‍िया गया है, जिसमें सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता शामिल है। मूर्ति और मंदिर परिसर की पूरी परिकल्पना त्रिदंडी श्री चिन्ना जीयर स्वामी ने की है। कार्यक्रम के दौरान श्री रामानुजाचार्य की जीवन यात्रा और शिक्षा पर थ्रीडी प्रेजेंटेशन मैपिंग प्रदर्शित की जाएगी। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी इस दौरान 108 दिव्य देशमों के आइडेंटिकल रिक्रिएशन का भी दौरा करेंगे जो स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी को घेरे हुए हैं।

जानिए कौन हैं रामानुजाचार्य स्वामी?
रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था। उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था।भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था।उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया। रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था, उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे। ‘नांबी’ नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया। तिरुकोष्टियारु ने ‘द्वय मंत्र’ का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि ‘मोक्ष’ को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए।

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