हरिद्वार।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि खगोलीय एवं आध्यात्मिक दृष्टि से जिस तरह सन् ४५९ में राजयोग बना था, उसकी इस वर्ष पुनरावृत्ति हुई है। यानि यह वर्ष भारत के लिए कई मायने में महत्त्वपूर्ण है। उस समय जिस तरह भारतीय राजाओं का पराक्रम और सांस्कृतिक विरासत अपने विकास की सीढ़ियों पर चढ रहा था, उसी तरह पुनः भारत की ओजस्विता प्रभाव बढ़ने वाला है। कहा कि यह समय सामूहिक पुरुषार्थ यानि सामूहिक आध्यात्मिक साधना में जुटने का है।
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रतिष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. चिन्मय पण्ड्या देश विदेश से सामूहिक नवरात्र साधना करने अपने गुरुधाम शांतिकुंज आये साधकों को संबोधित कर रहे थे।
अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आध्यात्मिक मंच के निदेशक डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि इन दिनों सांस्कृतिक परिवर्तन की नई गाथा लिखी जा रही है। इसमें भारत का स्वाभिमान, संस्कृति आदि को नये सिरे से लिखा जाना है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार, अन्याय जैसे अंधकार को मिटाने के लिए सहकारिता, ईमानदारी जैसे सद्गुण रूपी प्रकाश फैलाना का कार्य इन दिनों किया जाना है।
समाज में व्याप्त बुराइयों पर कुठाराघात करते हुए उन्होंने कहा कि केवल और केवल मैं की दौड़ समाज को खोखला कर रहा है। आत्मिक प्रगति के साथ मैं के भाव से उबरने के लिए साधना करने का यह सर्वोत्तम अवसर है। उन्होंने कहा कि नवरात्र साधना से व्यक्तित्व का विकास एवं आध्यात्मिक उत्थान होने लगता है।
नवरात्र साधना भारत के लिए महत्त्वपूर्ण : डॉ. चिन्मय पण्ड्या
इंटरडिसिप्लिनरी इंटरनेशनल जर्नल के संपादक डॉ. चिन्मय ने युगधर्म का स्मरण कराते हुए विभिन्न कथानकों का उल्लेख किया।
इससे पूर्व संगीत विभाग के कलाकारों ने साधकों को साधनात्मक मनोभूमि को ऊँचा उठाने वाला प्रेरक गीत प्रस्तुत किये। यहाँ आपको बताते चलें कि भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा रसिया, यूके, यूएस, कनाडा, स्काटलैण्ड आदि देशों से अनेक साधक गायत्री साधना के लिए शांतिकुंज पहुंचे हैं और वे अपने आत्मिक विकास के लिए सामूहिक साधना में जुटे हैं। नियमित त्रिकाल संध्या के दौरान सामूहिक जप एवं विशेष सत्संग का क्रम चलाया जा रहा है।
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