ख़बर पतंजलि आयुर्वेद से जुड़ी हुई है। 

रामदेव और बालकृष्ण के बिजनेस वेंचर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। 

बीते कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. IMA ने अपनी याचिका में आरोप लगाए हैं कि पतंजलि और रामदेव ने मॉडर्न मेडिसीन प्रैक्टिसेज़ के ख़िलाफ़ कैम्पेन चलाया हुआ है।  अब 21 नवंबर को जब सुनवाई हुई तो बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद को पैरों के नीचे से जमीन खींचने वाला आदेश दिया। 

बेंच ने कहा कि वो मॉडर्न मेडिसीन (आसान भाषा में एलोपेथी) के ख़िलाफ़ भ्रामक दावे न छापें।  बेंच ने यहां तक कहा कि अगर कोई ग़लत दावा करता है कि उनकी अमुक दवा अमुक बीमारी को ठीक करती है, तो उनके ऐसे हरेक प्रोडक्ट पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा. यानी एक तेल का गलत प्रचार किया तो 1 करोड़।  एक मंजन का गलत प्रचार किया तो उस पर भी एक करोड़। 

जब कोर्ट ने ये आदेश दिया तो कोर्ट में पतंजलि के वकील ने कोर्ट को भरोसा दिलाया।  भरोसा ये कि वो आगे कभी ऐसे विज्ञापन नहीं छापेंगे, और ना ही मीडिया में ऐसे गैरजिम्मेदाराना बयान देंगे। कोर्ट ने पतंजलि का ये बयान अपने संज्ञान में ले लिया। 

लेकिन ठीक अगले दिन यानी 22 नवंबर को पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक और प्रोमोटर रामदेव ने दोपहर तीन बजे एक पत्रकारवार्ता को संबोधित किया।  और अपनी कंपनी और कैम्पेन को डिफ़ेंड किया. कहा कि वो झूठा प्रचार नहीं कर रहे है।  और उन्होंने अपने तरीकों से बहुत सारे लोगों को ठीक किया है।  और साथ ही आरोप लगाये डॉक्टरों पर कि वो दुष्प्रचार कर रहे हैं.। 

सुनिए ध्यान रहे कि रामदेव कोर्ट में वादा करने के बाद फिर से ये सारे दावे कर रहे थे।  वो ये भी कह रहे थे कि जरूरत पड़ी तो साक्ष्य सामने रखेंगे।  जाहिर है कि साक्ष्य सामने आने चाहिए. ताकि देश का, देश के स्वास्थ्य तंत्र का वैज्ञानिक चेतना पर भरोसा जम सके।  भरोसा मजबूत हो सके. वरना कांग्रेस के राहुल गांधी हों या भाजपा के अमित मालवीय, वे तमाम नेताओं और प्रधानमंत्रियों को “पनौती” यानी अपशगुन करार देकर तमाम वैज्ञानिकों, वैज्ञानिक चेतनाओं का मज़ाक उड़ाते ही रहते हैं। 

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