अव्यक्त बापदादा मुरली:-

हमें बहुत सूक्ष्म, महीन अर्थात सूक्ष्म बुद्धि, दिव्य बुद्धि और विशाल बुद्धि की आवश्यकता होती है। ऐसी बुद्धि वाले सदैव बिजी रहते हैं, जिसके कारण उन्हें किसी प्रकार का विघ्न अपनी तरफ झुका नहीं सकता है। इससे कन्ट्रोलिंग पावर और रूलिंग पावर की प्राप्ति होती है, रूलिंग पावर तभी आती है जब पहले कन्ट्रोलिंग पावर हो।

जो स्वयं को कंट्रोल नहीं कर सकता है वह दूसरों को भी कंट्रोल नहीं कर सकता है। जो अपने स्वभाव को सरल बना लेते हैं उनका समय व्यर्थ नहीं जाता है। ट्रस्टी बनने के लिये बुद्धि की एक्सरसाइज करनी होगी अर्थात हम जब चाहें, जैसा चाहें वैसे स्वरूप में अपने को स्थित कर लें। जैसे शरीर में यदि भारीपन है और बोझ है तो शरीर को सहज रूप में जैसे चाहते हैं वैसे मोल्ड नहीं कर पाते हैं। ऐसे ही अगर हमारी मोटी बुद्धि है अर्थात किसी प्रकार का व्यर्थ बोझ अथवा व्यर्थ कचड़ा बुद्धि में भरा हुआ है तो ऐसी बुद्धि वाला जिस समय चाहे वैसे ही अपनी बुद्धि को मोल्ड नहीं कर सकता हैं।

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परमार्थ से व्यवहार स्वतः सिद्ध होता है। परमार्थ स्थायी सुख है जबकि व्यवहार विनाशी सुख है। कोई धूप में चलता है तो उसके पीछे परछाई पीछे पीछे चलती है उसी प्रकार जब ईश्वरीय सुख मिल जाता है तो विनाशी सुख स्वतः ही पीछे पीछे आता है, अर्थात कोई परछाई के पीछे चले तो उसे कुछ नहीं मिलेगा। जो ईश्वरीय सुख की तरफ जाता है उसके पीछे अल्पकाल का सुख स्वतः ही परछाई की तरह आता है और उसे उस चीज के लिये मेहनत नहीं करनी पड़ती है। हमारा लक्ष्य रहना चाहिए कि दोनों मिलें, परमार्थ और व्यवहार। नहीं तो व्यवहार के पीछे भागने से केवल एक चीज मिलेगी और वह भी विनाशी होगी, इतना ही नहीं वह भी कभी मिलेगी कभी नहीं मिलेगी।

परमार्थ सुख लेने के लिये सारी जिम्मेदारी परमात्मा को देनी होती है। यदि हम जिम्मेदारी रखते हैं तो फिकर होती है लेकिन परमात्मा को जिम्मेदारी देने से हम बेफिर्क बन जाते हैं। इसके लिये जो भी कर्म करें कर्म करने के पहले यह सोचें मैं केवल ट्रस्टी हूं क्योंकि ट्रस्टी अपने काम को बड़े प्रेम से करता है, इसलिये उसे बोझ का अनुभव नहीं होता है। ट्रस्टी का अर्थ है सब कुछ तेरा, अर्थात वह तेरे में भी प्राप्ति का अनुभव करता है और सदैव हल्का बना रहता है।

 

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