यूपी एसटीएफ पुलिस ने झांसी में पूर्व सांसद और सजायाफ्ता डॉन अतीक अहमद के बेटे असद को झांसी में एनकाउंटर में मार दिया. असद पुलिस से बचकर भाग रहा था. उसके बारे में कहा जा रहा था कि वो नेपाल भाग गया है लेकिन अब ये खबर है कि उसे एनकाउंटर में मार दिया गया. क्या होता है एनकाउंटर. ये कैसे शुरू हुआ. कानून इसके बारे में क्या कहता है. ये शब्द पुलिस और अपराधियों के बीच भिड़ंत में खूब इस्तेमाल होने लगा है. एनकाउंटर में बड़ी संख्या में अपराधी मारे भी जाते रहे हैं.
हालांकि संविधान और कोर्ट दोनों ही पुलिस के एनकाउंटर को गलत ठहराते हैं. इसमें कई मामलों में कई बार पुलिसवालों को सजा भी हो चुकी है लेकिन एनकाउंटर के मामले लगातार बढ़े ही हैं. उसकी वजह बढ़ता क्राइम भी है. वैसे एनकाउंटर शब्द भारत से ही निकला शब्द है. आमतौर पर एशियाई देशों में ये बहुत कॉमन हो चुका है. फिल्मों में इसे खूब दिखाया जाता है.
हमारे देश में आमतौर पर दो तरह के एनकाउंटर होते हैं. ये शब्द भी पुलिस विभाग द्वारा ही गढ़ा हआ है. एनकाउंटर दो तरह का होता है. पहला, जिसमें कोई खतरनाक अपराधी पुलिस या सुरक्षाबलों की कस्टडी से भागने की कोशिश करता है. ऐसे में पुलिस को उसे रोकने या पकड़ने के लिए फायरिंग का इस्तेमाल करना होता है.
दूसरा एनकाउंटर का वो होता है जब पुलिस किसी अपराधी को पकड़ने जाती है. वो बचने के लिए भागता है. पुलिस जवाबी कार्रवाई करती है. किसी अपराधी द्वारा पुलिस पर हमला करने पर भी पुलिस एनकाउंटर करती है.
एनकाउंटर की स्थिति बनती है तो पुलिस अपराधी पर सीधे हथियार का प्रयोग करने से पहले उसे चेतावनी देती है. हवाई फायर करती है. अगर वो नहीं रुख तो उसे भागने से रोकने के लिए उसके पैरों पर गोली मारी जाती है. तब भी अगर स्थिति कंट्रोल में ना आए तो पुलिस शरीर के अन्य हिस्सों पर फायर करती है.
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संविधान या कानून में ‘एनकाउंटर’
भारतीय संविधान में ‘एनकाउंटर’ शब्द का कोई जिक्र नहीं है. ये पुलिसिया डिक्शनरी से निकला शब्द है. आमतौर पर अपराधियों, आतंकवादियों से भिड़ंत के बाद पुलिस और सुरक्षाबल इसे एनकाउंटर कहते हैं.
भारतीय क़ानून एनकाउंटर को सही नहीं ठहराता. हालांकि कुछ ऐसे नियम-क़ानून ज़रूर हैं जो पुलिस को पॉवर देते हैं कि वो अपराधियों पर हमला कर सकती है. तब अगर अपराधी की मौत हुई तो इसे सही ठहराया जाता है.
सभी तरह के एनकाउंटर में पुलिस ये जिक्र करती है कि ये कार्रवाई आत्मरक्षा के दौरान हुई या अपराधी को भागने से रोकने या फिर बेकाबू होने से रोकने के लिए हुई.
क्या कहती है सीआरपीसी की धारा
आपराधिक संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 46 कहती है कि अगर कोई अपराधी ख़ुद को गिरफ़्तार होने से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ़्त से भागने की कोशिश करता है या पुलिस पर हमला करता है तो इन हालात में पुलिस उस अपराधी पर जवाबी हमला कर सकती है.
कोर्ट एनकाउंटर पर क्या कहती है
एनकाउंटर के दौरान हुई हत्याओं को एकस्ट्रा-ज्यूडिशियल किलिंग भी कहा जाता है. कोर्ट का निर्देश है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत किसी भी तरह के एनकाउंटर में इन तमाम नियमों का पालन होना ज़रूरी है. अनुच्छेद 141 भारत के सुप्रीम कोर्ट को कोई नियम या क़ानून बनाने की ताकत देता है.
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मानवाधिकार आयोग ने क्या लिखा था
मार्च 1997 में तत्कालीन एनएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस एमएन वेंकटचलैया ने सभी मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था. उसमें उन्होंने लिखा था, ”आयोग को कई जगहों से और गैर सरकारी संगठनों से लगातार यह शिकायतें मिल रहे हैं कि पुलिस के ज़रिए फ़र्जी एनकाउंटर लगातार बढ़ रहे हैं. साथ ही पुलिस अभियुक्तों को तय नियमों के आधार पर दोषी साबित करने की जगह उन्हें मारने को तरजीह दे रही है.”
जस्टिस वेंकटचलैया साल 1993-94 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे. उन्होंने लिखा था, ”हमारे क़ानून में पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को मार दे और जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि उन्होंने क़ानून के अंतर्गत किसी को मारा है तब तक वह हत्या मानी जाएगी.”
मानवाधिकार आयोग ने क्या नियम बनाए हैं
1. जब किसी पुलिस स्टेशन के इंचार्ज को किसी पुलिस एनकाउंटर की जानकारी प्राप्त हो तो वह इसके तुरंत रजिस्टर में दर्ज करे.
2. जैसे ही किसी तरह के एनकाउंटर की सूचना मिले और फिर उस पर किसी तरह की शंका ज़ाहिर की जाए तो उसकी जांच करना ज़रूरी है. जांच दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम या राज्य की सीआईडी के ज़रिए होनी चाहिए.
3. अगर जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो मारे गए लोगों के परिजनों को उचित मुआवज़ा मिलना चाहिए.
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बाद में एनएचआरसी ने इसमें कुछ और दिशा-निर्देश जोड़े
– जब कभी पुलिस पर किसी तरह के ग़ैर-इरादतन हत्या के आरोप लगे, तो उसके ख़िलाफ़ आईपीसी के तहत मामला दर्ज होना चाहिए. घटना में मारे गए लोगों की तीन महीनें के भीतर मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए.
– राज्य में पुलिस की कार्रवाई के दौरान हुई मौत के सभी मामलों की रिपोर्ट 48 घंटें के भीतर एनएचआरसी को सौंपनी चाहिए. इसके तीन महीने बाद पुलिस को आयोग के पास एक रिपोर्ट भेजनी ज़रूरी है जिसमें घटना की पूरी जानकारी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने हर एनकाउंटर के बाद जांच जरूरी की
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए हर एनकाउंटर की जांच जरूरी की थी. जांच स्वतंत्र एजेंसी से होती है. इसके खत्म होने तक शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता. सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच अनिवार्य. पुलिसकर्मियों को हर एनकाउंटर के बाद इस्तेमाल किए गए हथियार व गोलियों का हिसाब देना होता है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार अनुचित एनकाउंटर में दोषी पाए गए पुलिसकर्मी को निलंबित करके उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाती है. अगर दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती है तो पीडित सत्र न्यायाधीश से इसकी शिकायत कर सकता है.
अंडरवर्ल्ड अपराधियों को मारने के लिए एनकाउंटर
1990 और 2000 के पहले दशक में मुम्बई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड के कई भूमिगत अपराधियों को मार गिराया था. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद बड़े पैमाने पर एनकाउंटर हुए हैं
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