जुड़- शीतल पर होती है जल देवता की आराधना

विकास कुमार झा

हरिद्वार।

मैथिली नव वर्ष को जुड़ शीतल के नाम से भी जाना जाता है. भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में मैथिली नव वर्ष के पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, मैथिली नव वर्ष 15 अप्रैल को मनाया जाता है, इस साल 14 अप्रैल को यह पर्व मनाया गया . जुड़ शीतल का मतलब शीतलता की प्राप्ति है, इसलिए मैथिली नव वर्ष के रूप में शीतलता का लोकपर्व जुड़ शीतल मनाया जाता है. जिस तरह से मिथिला के लोग छठ में सूर्य और चौरचन में चंद्रमा की पूजा करते हैं, उसी तरह से जुड़ शीतल पर मैथिली समाज के लोग जल की पूजा करके शीतलता की कामना करते हैं. इस पर्व के पहले दिन सतुआन होता है, जबकि दूसरे दिन धुरखेल मनाया जाता है और इस दौरान पूरा समाज कुएं और तालाब की सफाई करता है.

                                     

बिहार सरकार आधिकारिक तौर पर इस दिन को मैथिली दिवस कहती है. मिथिला समाज के लोग इस दिन चूल्हा नहीं जलाते हैं और सतुआन के अगले दिन सत्तू व बेसन से बनाए गए बासी भोजन को ही खाते हैं.
बहरहाल, इस पर्व को मनाने के पीछे फसल तंत्र और मौसम भी कारक है, मिथिला में सत्तू और बेसन की पैदावार इसी समय होती है. वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो सत्तू और बेसन से बने व्यंजन अधिक समय तक खराब नहीं होते हैं. गर्मी के मौसम में खाने-पीने की चीजें जल्दी खराब हो जाती हैं, जिससे बचने के लिए सत्तू और बेसन का इस्तेमाल अधिक किया जाता है. इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डालकर ‘जुड़ैल रहु’ का आशीर्वाद देते हैं. उनका मानना है कि इससे पूरी गर्मी सिर ठंडा रहता है, इसके साथ ही इस दिन शाम के समय परिवार के सभी लोग पेड़ पौधों को जल से सींचते हैं.

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