हरिद्वार।
अखिल भारतीय सनातन सेना के संगठन सचिव स्वामी आलोक गिरी महाराज ने समलैंगिक कानून का पूरजोर विरोध करते हुए भारत में इसकी मान्यता पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने इसे पाश्चात्य सभ्यता की बीमारी बताते हुए भारत के लिए अभिशाप बताया है।
स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि सनातन संस्कृति में समलैंगिकता स्वीकार्य नहीं है। लेकिन पाश्चात्य सभ्यता में इसे स्वीकार्यता मिली है। भारत में भी इसकी नकल होने लगी है और एक पक्ष इसे कानूनी मान्यता देने की पैरवी में लगा है। लेकिन कानूनी तौर पर मान्यता मिलने के बावजूद समाजिक तौर पर इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा प्रकृति के नियमों के विपरीत समलैंगिकता को किसी हालत में सुधार करना देश और समाज के हित में नहीं है। ईश्वर ने सृष्टि के संचालन के लिए नर और मादा की उत्पत्ति है जिनके बीच संपर्क से सृष्टि का संचालन होता है लेकिन मात्र अपनी बिलिप्सा को पूरा करने के लिए समलैंगिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे उचित नहीं ठहरा जा सकता और एक संत होने के नाते हुए इसका पुरजोर विरोध करते हैं एवं सभी सनातन धर्म के लोगों से अपील करते हैं कि वह भी आगे आकर इस अनैतिक नियम का विरोध करें और भारत में इस बीमारी को बढ़ने से रोके।
भारतीय समाज में रिश्तो का खासा महत्व है। वहीं विदेशों में रिश्तो की कोई खास अहमियत नहीं है।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया है। आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास दिया जाएगा। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है, यह अपराध ग़ैर ज़मानती है।
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