हरिद्वार।

हरिद्वार नगर निगम अब मंशादेवी मंदिर पर रोपवे संचालन के लिए नये सिरे से टैंडरिंग करने जा रहा है।लेकिन नये सिरे से रोपवे की टैंडरिंग में अनेक पैंच हैं।जिसके कारण निगम की मुहिम लटक सकती है।

ऊषाब्रेको के साथ मंशादेवी मंदिर पर रोपवे संचालन के लिए हरिद्वार नगर पालिका का अनुबंध 1974 में हुआ था। जिसके बाद 1981 से रोपवे का संचालन शुरू हो सका। उसके बाद से अबतक नियमों व व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव आ चुके हैं। रोपवे का संचालन वनविभाग व नजूल की भूमि पर होता है।इन दोनों ही भूमियों पर अब निगम का अधिकार नहीं है।

ऊषाब्रेको को नगरपालिका ने वनविभाग की जो भूमि लीज पर लेकर रोपवे के लिए दी हुई है, उसकी लीज अवधि 2013 में समाप्त हो चुकी है। वन विभाग उसके बाद नेशनल टाईगर रिजर्व, वन्य जीव संरक्षण बोर्ड, राजाजी पार्क व एनजीटी के नियमों का हवाला देते हुए लीजवृद्धि से इंकार कर चुका है। प्रमुख वन संरक्षक बहुत पहले इस बाबत निगम को पत्र भेज चुके हैं।

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रोपवे की नयी टैंडरिंग से अब रोपवे संचालित करने वाली कंपनी से नये अनुबंध करने होंगें। जिसके बाद इन विभागों से अनापत्ति लेने के बाद ही वनविभाग की भूमि लीज पर हासिल की जा सकेगी। यह एक लंबी प्रक्रिया है। एनजीटी, राष्ट्रीय टाईगर रिजर्व से वनीय क्षेत्र में व्यावसायिक गतिविधियों की अनुमति हासिल करना वर्तमान में टेढ़ी खीर है।रोपवे बेस इकाई नजूल भूमि पर स्थित है।जिसका प्रबंधन भी शासन ने 2015 में निगम से लेकर हरिद्वार विकास प्राधिकरण को सोंप दिया था।अनाधिकार ऊषाब्रेको की लीज बढ़ाए जाने के बाद हविप्रा भी निगम को नोटिस थमा चुका है। ऐसे में अब नये सिरे से रोपवे संचालन की निगम की कवायद में पेंच ही पेंच हैं।

करोड़ों लगाकर कौन चलाएगा सेवार्थ?

ऊषाब्रेको ने अनुबंध की शर्त के अनुसार मंशादेवी मंदिर पर रोपवे का संचालन सेवार्थ शुरु किया था। उस वक्त इसका किराया केवल 2 रुपये था और किराए पर पालिका का नियंत्रण था। हालांकि बाद में पालिका ने ही कंपनी के पक्ष में यह उपबंध समाप्त कर दिया। वर्तमान में लगा हुआ ऊषाब्रेको का प्रोजेक्ट अपनी मियांद पूरी कर चुका है। लीजवृद्धि के प्रस्ताव में ऊषाब्रेको स्वयं 57 करोड़ रुपये की लागत से नया व आधुनिक प्रोजेक्ट लगाने की बात कह चुकी है। ऐसे में नया अनुबंध हासिल करने वाली कंपनी को भी नये प्रोजेक्ट की स्थापना में करोडों खर्च करने होंगे।

 

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