मुंबई।

संवाददाता:-जितेन्द्र रघुवंशी

राजनीतिक प्रतिबद्धता से बंधे हुए स्वजनों द्वारा जिस तरह से कंगना राणावत का बचाव किया जा रहा है, उससे गहरा दु:ख हुआ है।

एक तरफ सरकार द्वारा आजादी के ७५ वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, वहीं कंगना राणावत द्वारा इसे नकारते हुए यह कहा जा रहा है कि ७५ वर्ष पहले हमें भीख में आजादी मिली थी, आजादी तो २०१४ में मिली है। तो फिर अमृत महोत्सव क्यों मनाया जा रहा है?

सोचने का विषय है एक तरफ सरकार और पूरा देश बड़ी ही धूमधाम से आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और दूसरी तरफ कंगना राणावत के द्वारा जो वीर सपूतों, वीर शहीदों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, जिन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते सीने पर गोली खाई और हंसते हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया, उनका अपमान किया जा रहा है।

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कंगना राणावत के शर्मनाक बयान से भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस न जाने कितने वीर सपूतों की आत्माएं रोई होंगी। उनकी महान आत्माओं ने चीखकर कहा होगा कि इसी दिन के लिए, यही सब सुनने के लिए भारत को आजादी दिलाई थी, उन शहीदों की माताओं की आत्माएं भी रोई होंगी।

कह रही होंगी कि क्या यही सुनने के लिए हमने अपने वीर सपूतों को देश के लिए कुर्बान किया। बहुत ही शर्मनाक!!! अभी तक इस राणावत के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह देश के लिए बेहद ही दुखदाई है, इसकी जितनी भी निंदा की जाए उतनी कम है।

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