भारतीय फिल्मों में शामिल तेलुगु भाषा में बनी पुष्पा : द राइज – पार्ट 1 हिंदी, तमिल, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। इस फिल्म से दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार अल्लू अर्जुन हिंदी दर्शकों के सामने आए हैं। कहानी शुरू होती है, शेषाचलम जंगल यह जंगल शेषाचलम पहाड़ियों के पांच लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में है इस जंगल को लाल चंदन की वजह से जाना जाता है और लाल चंदन सिर्फ आंध्रप्रदेश राज्य के कडपा, चित्तूर और नेल्लोर जिलों में पाए जाते हैं लाल चंदन भारत में एक खास स्थान पर ही पाया जाता है और वो ये जंगल है इस लकड़ी का विशेष महत्व है इसे बाहर ज्यादा आयात किया जाता है और अब तो गैर कानूनी तरीके से यह बाहर जाता है। पुष्पा राज (अल्लू अर्जुन) इन्हीं लकड़ियों की तस्करी करता है। पुष्पा की बैक स्टोरी भी है। वह एक नाजायज औलाद है। वह लकड़ी काटने वाले दिहाड़ी मजदूर के तौर पर लाल चंदन की लकड़ी की तस्करी करने वाले कोंडा रेड्डी (अजय घोष) के लिए काम करता है।
फ़िल्म पुष्पा में दिखाया गया हैं कि इस जंगल मे लाल चंदन की किस तरह से तस्करी की जाती हैं और यह लाल चंदन किस तरह बेचा जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं इस जंगल की क्या खास बात है और इस चंदन में ऐसा क्या खास है कि इसे लेकर इतना विवाद है यह चंदन इतना कीमती है कि अब कई कमांडो इस सुरक्षा के लिए तैनात किए गए हैं तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी हर एक बात ताकि आपको भी भारत के इस अनोखे खजाने के बारे में पता चल सके।
अब इस लाल चंदन के दुर्लभ होने की वजह से तस्करों की इस जंगल पर खास निगाहें होती हैं और तस्करों को इससे काफी फायदा भी होता है हालांकि, अब तो इस कटाई पर बैन लगा दिया गया है और इसे आंध्र प्रदेश से बाहर ले जाना गैर-कानूनी है बताया जाता है कि इन चंदन के पेड़ों की सुरक्षा स्पेशल टास्क फोर्स के जवान करते हैं हालांकि, यहां पर पाए जाने वाले खास लाल चंदन के पेड़ों की संख्या 50 प्रतिशत तक कम हो चुकी है।
इंडिया टुडे मैगजीन में छपी रिपोर्ट के अनुसार, कुछ साल पहले लाल चंदन से करीब 1,200 प्रतिशत का लाभ होने की वजह से तस्कर अपनी जान जोखिम में डालकर हर साल 2,000 टन लाल चंदन चेन्नई, मुंबई, तूतीकोरिन और कोलकाता बंदरगाहों तथा नेपाल और तिब्बत के रास्ते प्रमुख बाजार चीन तक पहुंचाते थे वे लकड़ी को एसबेस्टस की चद्दरों, सरसों की खली, नारियल के रेशे और नमक के बीच में छिपाकर एक से दूसरे स्थान पर ले जाते थे. साल 2015 में इन्हें रोकने के लिए कई तस्कर मुठभेड़ में मारे भी गए थे अब तस्करी करते पाए जाने पर 11 साल की जेल की सजा का प्रावधान भी है।
लाल चंदन की फर्नीचर, सजावटी सामान, पारंपरिक वाद्ययंत्र के लिए मांग अधिक है इसके अलावा हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, तस्वीरों के फ्रेम और घर में काम आने वाले डिब्बों के अलावा गुड़ियाएं बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया करते थे। जापान में तो खास वाद्ययंत्र की वजह से इस लकड़ी की मांग है इंटरनेशनल मार्केट में चंदन की लकड़कियों की कीमत काफी ज्यादा है चीन, जापान, सिंगापुर, यूएई, आस्ट्रेलिया सहित अन्य कई देशों में इन लकड़ियों की डिमांड है, लेकिन सबसे अधिक मांग चीन में है।
सत्याग्रह की एक रिपोर्ट में कहा गया है जापान में पारंपरिक वाद्य यंत्र शामीसेन भारत से लाल चंदन का आयात होता था बताया जाता है कि हर साल दसियों टन लाल चंदन आज भी इसे बनाने में इस्तेमाल हो रहा है वहां शादी के वक्त इसे देने की परंपरा है इससे बना फर्नीचर भी बहुत महंगा बिकता है और इसे स्टेटस सिंबल की तरह देखा जाता है माना यह भी जाता है कि न्यूक्लियर रियेक्टर से होने वाले विकिरण को रोकने में भी लाल चंदन काफी मददगार साबित होता है जापानी वाद्ययंत्र शामीसेन के लिए लाल चंदन की लकड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है इसका फिल्म में जिक्र किया गया।
