हरिद्वार

बसपा सुप्रीमो मायावती से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान तक हरिद्वार से चुनाव लड़े हैं। 1987 के उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने हाथ आजमाया था।

साल 1977 में वजूद में आई हरिद्वार लोकसभा सीट ने राजनीति के परिदृश्य से नेपथ्य में चल रहे राजनेताओं को ताज पहनाकर उनके राजनीतिक भविष्य का उदय किया है। भले ही उनकी यहां हार हुई या जीत। इस सीट से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का इतिहास रहा है कि उन्हें केंद्र और राज्य में नई जिम्मेदारी मिली। कुछ तो मुख्यधारा की राजनीति के शिखर पर जा पहुंचे।हरिद्वार संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले राजनेताओं की लंबी फेहरिस्त है। उनमें प्रमुख रूप से बसपा सुप्रीमो मायावती, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और अब पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत यहां से 2024 के आम चुनाव में भाजपा के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं।

दूसरे स्थान पर रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती
वर्ष 1984 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के सुंदरलाल चुनाव जीते थे। उनके निधन के बाद 1987 के उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने हाथ आजमाया। चुनाव परिणाम घोषित हुए तो कांग्रेस के रामसिंह ने 1,49,377 मत लेकर 23,978 वोटों के अंतर से ये चुनाव जीत गए। बसपा सुप्रीमो मायावती दूसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 1,25,399 वोट मिले।

रामविलास पासवान को 34,225 वोट मिले। पासवान ने यह चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा था। इसके बाद 1989 में रामविलास पासवान बिहार हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते और विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में केंद्रीय श्रम और कल्याण मंत्री बने। पासवान को छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनुभव था।

राम विलास पासवान
छह बार केंद्र में मंत्री रहे रामविलास पासवान
1989 में पहली बार केंद्रीय श्रम मंत्री बने

1996 में रेल मंत्री
1999 में संचार मंत्री

2002 में कोयला
2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री
2019 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री

बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती हरिद्वार से 1987 का उपचुनाव हारने के बाद यूपी की बिजनौर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद मायावती 1995 में पहली बार देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की मुख्यमंत्री बनीं।

हरीश रावत ने चार चुनाव हारने के बाद किया हरिद्वार का रुख
पूर्व सीएम हरीश रावत अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के बची सिंह रावत से 1991,1996, 1998, 1999 का लोकसभा चुनाव हार चुके थे। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 में हरिद्वार लोस सीट से चुनाव लड़ा और भाजपा के स्वामी यतींद्रानंद गिरी महाराज को तीन लाख 32 हजार 55 मतों से हराकर सांसद बने। मनमोहन सिंह की सरकार में हरीश 2012-2014 तक केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहे। उत्तराखंड में 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री बने। हालांकि, हरीश रावत ने 2017 के विधानसभा चुनाव में दो सीटों से ताल ठोकी और दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

सीएम पद से हटने के बाद निशंक ने भी किया हरिद्वार का रुख
वर्ष 2009 में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी को हटाकर डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को राज्य की बागडौर सौंपी। राज्य में 2011 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ तो 2012 के विधानसभा चुनाव के एनवक्त दोबारा खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2012 में निशंक डोईवाला से विधायक रहे और उन्होंने हरिद्वार लोस सीट से भाजपा के टिकट पर 2014 का चुनाव लड़ा। निशंक पूर्व सीएम हरीश रावत की पत्नी रेनुका रावत को हराकर सांसद बने। 2019 के चुनाव में निशंक ने हरिद्वार से ही कांग्रेस प्रत्याशी अंबरीश कुमार को हराया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में देश के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री बने।

अब वनवास से लौटे त्रिवेंद्र रावत मैदान में
2017 का विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य के मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी ही पार्टी के विधायकों के असंतोष का सामना करना पड़ा। मार्च 2021 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद त्रिवेंद्र ने 2022 का विस चुनाव भी नहीं लड़ा। तब से लेकर अब तक रावत राजनीतिक नेपथ्य में थे। अब 2024 के लोस चुनाव में त्रिवेंद्र हरिद्वार से लोस चुनाव लड़ रहे हैं।

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