हरिद्वार।

संपादक द्वारा,

इतिहासकारों का मानना है कि ये पर्व आर्यों में भी प्रचलित था, लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में इस त्योहार के बारे में लिखा हुआ है। इसमें खास तौर पर ‘जैमिनी’ के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र शामिल हैं। नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।

भारतीय पंचांग और ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होली के अगले दिन से चैत्र शुदी प्रतिपदा की शुरुआत होती है और इसी दिन से भारतीय नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इसलिए होली पर्व नवसंवत और नववर्ष के आरंभ का प्रतीक है।

साथ ही धर्मग्रन्थो में एक कहानी यह भी प्रचलित है कि अपने पुत्र प्रहलाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठे। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप के आदेशानुसार आग में बैठने पर होलिका तो जल गई पर प्रहलाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रहलाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।

साथ ही किवदन्तियों में प्रचलित है कि भगवान शिव से भी होली पर्व का विशेष संबध है धार्मिक दृष्टि से होली में लोग रंगो से बदरंग चेहरों और कपड़ो के साथ जो अपनी वेशभूषा बनाते है वह भगवान शिव के गणों की है।
उनका नाचना गाना हुडदंग मचाना और शिवजी की बारात का दृश्य उपस्थित करता है। इसलिए होली का सम्बद्ध भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है।

होली का पर्व हो और मथुरा.. वृन्दावन.. बरसाना.. का जिक्र न हो तो ऐसा कैसे हो सकता है भारत के ब्रज क्षेत्र में, जहाँ भगवान कृष्ण बड़े हुए, भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था जिसके खुशी में गाँववालो ने बृंदावन में होली का त्यौहार मनाया था। इसी खु़शी में इसी पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी और दुसरे दिन रंग खेलने के उत्सव मनाया। राधा और कृष्ण के चेहरे के चंचल रंग को होली के रूप में याद किया जाता है।

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ब्रज की लठमार होली आज भी विश्व सहित सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। होली के अवसर पर मथुरा के वृंदावन में अद्वितीय मटका समारोह का आयोजन किया जाता है। समारोह में दूध और मक्खन से भरा एक मिट्टी का मटका ऊंचाई पर बांधा जाता हैं और लड़के मटके तक पहुंचने के लिए जी तोड़ कोशिश करते है। इस आयोजन को जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है।

महाराष्ट्र में गोविंदा होली अर्थात मटकी-फोड़ होली खेली जाती है। इस दौरान रंगोत्सव भी चलता रहता है।

तमिलनाडु में लोग होली को कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते हैं। इसीलिए यहां पर होली को कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा-दाहानाम कहते हैं। कर्नाटक में होली के पर्व को कामना हब्बा के रूप में मनाते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगना में भी ऐसी ही होली होती है।
उत्तराखण्ड के गढ़वाल में होली का प्रारंभ फाल्गुन शुक्ल एकादशी से हो जाता है। परंपरा के अनुसार इस दिन पय्यां, मेहल या चीड़ की टहनी पर विधि-विधान पूर्वक चीर रंग-बिरंगे कपड़ों के कुछ टुकड़े बांधी जाती है। द्वादशी के दिन इस चीरबंधी टहनी को काटकर एक निश्चित स्थान पर स्थापित किया जाता है और पूर्णिमा तक नित्य उसकी पूजा की जाती है। चीरबंधन के दिन से ही गांव के बच्चों की टोली (होल्यार) होली मनाना शुरू कर देती है। वंही कुमाऊँ की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है।

हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा, चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है।

इसके अतिरिक्त गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है।
दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया जो होली का ही एक रूप है। बिहार में होली पर्व की तो अपनी ही शान है यंहा फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है।
इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के शृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी होली से गहरा संबंध है। हालांकि ध्रुपद, धमार और ठुमरी के बिना आज भी होली अधूरी है। वहीं राजस्थान में राजसी ठाठंबांट से पारंपरिक रूप में मनाई जाने वाली होली का रंग ही अलग है।

होली एकमात्र ऐसा त्यौहार है जो पुरे विश्व में एकसाथ मनाया जाता है। जैसा कि आप जानते है कि हिन्दू धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में पुरे विश्व में फैले हुए है, जिन्होंने धीरे धीरे होली को प्रसिद्ध त्यौहार बना दिया जिसका आनंद विदेशी लोग भी लेते है। होली के अवसर पर भारत में भी विदेशियो का भारी संख्या में आगमन होता है।

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