हरिद्वार।

महामण्डलेश्वर राजगुरू स्वामी संतोषानंद महाराज ने कहा है कि धर्म संसद सनातन धर्म की एक ऐसी व्यवस्था है। जो सनातन धर्म पर किसी भी प्रकार के आक्रमण या ऐसी कोई विकृति जिससे समाज, संस्कृति, सभ्यता को हानि पहुंचने की स्थिति में धर्म संसद का आयोजन किया जाता है। लेकिन वर्तमान में कोई भी धर्म का संसद का चयन कर लेता है और समाज को गुमराह भी करता है। उन्होंने कहा कि धर्म संसद का आयोजन सुनिश्चितता के साथ होना चाहिए।

सुनिश्चितता के साथ होना चाहिए धर्म संसद का आयोजन-राजगुरू स्वामी संतोषानंद

धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष से इसका कोई लेना देना नहीं होता है। यदि सनातन धर्म की रक्षा के लिए कार्य किया जाता है तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे कोई विवाद उत्पन्न ना हो। लेकिन अंतिम रूप से इसके उद्देश्य और प्रेरणा का निर्धारण समाज करता है। धर्म संसद में महात्मा गांधी पर की गयी टिप्पणी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि ऐसा किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। देश के विभाजन के समय विपत्ती काल में महात्मा गांधी ने किसी काल और परिस्थितियों में निर्णय लिया। यह उस समय की बात है। वर्तमान समय में इस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया, दाण्डी यात्रा की, विदेशी वस्त्रों की होली जलायी और समाज को अहिंसा का संदेश दिया। राष्ट्र निर्माण में उनका अतुल्य योगदान आज भी प्रासंगिक है।

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